वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 5: सुन्दर काण्ड
»
सर्ग 35: सीताजी के पूछने पर हनुमान जी का श्रीराम के शारीरिक चिह्नों और गुणों का वर्णन करना तथा नर-वानर की मित्रता का प्रसङ्ग सुनाकर सीताजी के मन में विश्वास उत्पन्न करना
»
श्लोक 86
श्लोक
5.35.86
अतुलं च गता हर्षं प्रहर्षेण तु जानकी।
नेत्राभ्यां वक्रपक्ष्माभ्यां मुमोचानन्दजं जलम्॥ ८६॥
अनुवाद
play_arrowpause
उस समय सीता जी को अत्यधिक खुशी हुई। इस महान् प्रसन्नता के कारण उनकी सुंदर आँखों से आनंद के आँसू बहने लगे।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.