श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 35: सीताजी के पूछने पर हनुमान जी का श्रीराम के शारीरिक चिह्नों और गुणों का वर्णन करना तथा नर-वानर की मित्रता का प्रसङ्ग सुनाकर सीताजी के मन में विश्वास उत्पन्न करना  »  श्लोक 68-70
 
 
श्लोक  5.35.68-70 
 
 
तस्य तद् वचनं श्रुत्वा सम्पाते: प्रीतिवर्धनम्॥ ६८॥
अङ्गदप्रमुखा: सर्वे तत: प्रस्थापिता वयम्।
विन्ध्यादुत्थाय सम्प्राप्ता: सागरस्यान्तमुत्तमम्॥ ६९॥
त्वद्दर्शने कृतोत्साहा हृष्टा: पुष्टा: प्लवङ्गमा:।
अङ्गदप्रमुखा: सर्वे वेलोपान्तमुपागता:॥ ७०॥
 
 
अनुवाद
 
  सम्पाती के उन शब्दों को सुनकर वानरों में खुशी की लहर दौड़ गई। उन्हीं के भेजने पर अंगद और हम सभी उत्साह के साथ विंध्य पर्वत से निकलकर समुद्र के उत्तम किनारे पर आ पहुँचे। इस तरह अंगद आदि सभी मजबूत और तंदुरुस्त वानर समुद्र के किनारे पहुँचे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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