श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 35: सीताजी के पूछने पर हनुमान जी का श्रीराम के शारीरिक चिह्नों और गुणों का वर्णन करना तथा नर-वानर की मित्रता का प्रसङ्ग सुनाकर सीताजी के मन में विश्वास उत्पन्न करना  »  श्लोक 59
 
 
श्लोक  5.35.59 
 
 
ते वयं कार्यनैराश्यात् कालस्यातिक्रमेण च।
भयाच्च कपिराजस्य प्राणांस्त्यक्तुमुपस्थिता:॥ ५९॥
 
 
अनुवाद
 
  हम लोग कार्य की सिद्धि की आशा खो बैठे थे और निश्चित समय से अधिक बीत जाने के कारण वानरराज सुग्रीव के भय से हम सभी लोग अपने प्राणों को त्यागने के लिए तैयार हो गए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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