श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 35: सीताजी के पूछने पर हनुमान जी का श्रीराम के शारीरिक चिह्नों और गुणों का वर्णन करना तथा नर-वानर की मित्रता का प्रसङ्ग सुनाकर सीताजी के मन में विश्वास उत्पन्न करना  »  श्लोक 47
 
 
श्लोक  5.35.47 
 
 
तवादर्शनशोकेन राघव: परिचाल्यते।
महता भूमिकम्पेन महानिव शिलोच्चय:॥ ४७॥
 
 
अनुवाद
 
  देवी! तुम्हें न देख पाने का शोक श्रीरघुनाथजी को उसी प्रकार विचलित कर देता है, जैसे किसी भयंकर भूकंप से बड़ा-सा पर्वत हिल जाता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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