श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 35: सीताजी के पूछने पर हनुमान जी का श्रीराम के शारीरिक चिह्नों और गुणों का वर्णन करना तथा नर-वानर की मित्रता का प्रसङ्ग सुनाकर सीताजी के मन में विश्वास उत्पन्न करना  »  श्लोक 46
 
 
श्लोक  5.35.46 
 
 
त्वत्कृते तमनिद्रा च शोकश्चिन्ता च राघवम्।
तापयन्ति महात्मानमग्न्यगारमिवाग्नय:॥ ४६॥
 
 
अनुवाद
 
  श्रीरघुनाथजी के लिए अनिद्रा, शोक और चिंता के रूप में तीनों प्रकार के कष्ट ऐसे हैं जैसे अग्निशाला में अग्निहोत्र, दक्षिणा और हवन नामक तीन प्रकार की आगों ने अग्निशाला को तपा रखा है और वह पूरी तरह से परेशान है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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