श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 35: सीताजी के पूछने पर हनुमान जी का श्रीराम के शारीरिक चिह्नों और गुणों का वर्णन करना तथा नर-वानर की मित्रता का प्रसङ्ग सुनाकर सीताजी के मन में विश्वास उत्पन्न करना  »  श्लोक 45
 
 
श्लोक  5.35.45 
 
 
स तवादर्शनादार्ये राघव: परितप्यते।
महता ज्वलता नित्यमग्निनेवाग्निपर्वत:॥ ४५॥
 
 
अनुवाद
 
  आर्यों के दर्शन के बिना भगवान श्री रघुनाथ जी को बहुत दुःख और पीड़ा हो रही है। जैसे महान और विशाल अग्निपर्वत में लगातार जलती हुई आग उन्हें दिन-रात तपाती रहती है, ठीक उसी तरह वो तुमसे विरह की ज्वाला में जल रहे हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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