स तवादर्शनादार्ये राघव: परितप्यते।
महता ज्वलता नित्यमग्निनेवाग्निपर्वत:॥ ४५॥
अनुवाद
आर्यों के दर्शन के बिना भगवान श्री रघुनाथ जी को बहुत दुःख और पीड़ा हो रही है। जैसे महान और विशाल अग्निपर्वत में लगातार जलती हुई आग उन्हें दिन-रात तपाती रहती है, ठीक उसी तरह वो तुमसे विरह की ज्वाला में जल रहे हैं।