श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 35: सीताजी के पूछने पर हनुमान जी का श्रीराम के शारीरिक चिह्नों और गुणों का वर्णन करना तथा नर-वानर की मित्रता का प्रसङ्ग सुनाकर सीताजी के मन में विश्वास उत्पन्न करना  »  श्लोक 44
 
 
श्लोक  5.35.44 
 
 
तानि दृष्ट्वा महार्हाणि दर्शयित्वा मुहुर्मुहु:।
राघव: सहसौमित्रि: सुग्रीवे संन्यवेशयत्॥ ४४॥
 
 
अनुवाद
 
  लक्ष्मण सहित श्री रघुनाथजी ने उन बहुमूल्य आभूषणों को बार-बार देखा और स्वयं पहना, फिर सुग्रीव को दे दिया।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.