श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 35: सीताजी के पूछने पर हनुमान जी का श्रीराम के शारीरिक चिह्नों और गुणों का वर्णन करना तथा नर-वानर की मित्रता का प्रसङ्ग सुनाकर सीताजी के मन में विश्वास उत्पन्न करना  »  श्लोक 41-43
 
 
श्लोक  5.35.41-43 
 
 
पश्यतस्तानि रुदतस्ताम्यतश्च पुन: पुन:॥ ४१॥
प्रादीपयद् दाशरथेस्तदा शोकहुताशनम्॥ ४२॥
शायितं च चिरं तेन दु:खार्तेन महात्मना।
मयापि विविधैर्वाक्यै: कृच्छ्रादुत्थापित: पुन:॥ ४३॥
 
 
अनुवाद
 
  उस समय दशरथ नंदन श्रीराम की शोकाग्नि प्रज्वलित हो उठी। दुःख से आतुर होकर वे महात्मा रघुवीर काफी देर तक बेहोशी की अवस्था में पड़े रहे। तब मैंने तरह-तरह के आश्वस्त करने वाले वचन कहकर बड़ी मुश्किल से उन्हें उठाया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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