वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 5: सुन्दर काण्ड
»
सर्ग 35: सीताजी के पूछने पर हनुमान जी का श्रीराम के शारीरिक चिह्नों और गुणों का वर्णन करना तथा नर-वानर की मित्रता का प्रसङ्ग सुनाकर सीताजी के मन में विश्वास उत्पन्न करना
»
श्लोक 41-43
श्लोक
5.35.41-43
पश्यतस्तानि रुदतस्ताम्यतश्च पुन: पुन:॥ ४१॥
प्रादीपयद् दाशरथेस्तदा शोकहुताशनम्॥ ४२॥
शायितं च चिरं तेन दु:खार्तेन महात्मना।
मयापि विविधैर्वाक्यै: कृच्छ्रादुत्थापित: पुन:॥ ४३॥
अनुवाद
play_arrowpause
उस समय दशरथ नंदन श्रीराम की शोकाग्नि प्रज्वलित हो उठी। दुःख से आतुर होकर वे महात्मा रघुवीर काफी देर तक बेहोशी की अवस्था में पड़े रहे। तब मैंने तरह-तरह के आश्वस्त करने वाले वचन कहकर बड़ी मुश्किल से उन्हें उठाया।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.