श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 35: सीताजी के पूछने पर हनुमान जी का श्रीराम के शारीरिक चिह्नों और गुणों का वर्णन करना तथा नर-वानर की मित्रता का प्रसङ्ग सुनाकर सीताजी के मन में विश्वास उत्पन्न करना  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  5.35.19 
 
 
चतुर्दशसमद्वन्द्वश्चतुर्दंष्ट्रश्चतुर्गति:।
महोष्ठहनुनासश्च पञ्चस्निग्धोऽष्टवंशवान्॥ १९॥
 
 
अनुवाद
 
  शरीर पर दो-दो की संख्या में चौदह अंग होते हैं. ये सभी अंग एक-दूसरे से सम हैं। उनके चारों कोनों की चारों दाढ़ें शास्त्रीय लक्षणों के अनुसार हैं। वे सिंह, बाघ, हाथी और सांड की तरह चार तरह के पशुओं के समान चलते हैं। उनके ओठ, ठुड्डी और नाक सभी शानदार हैं। केश, आँखें, दाँत, त्वचा और पैर के तलवे- ये पाँचों अंग चमकदार हैं। दोनों हाथ, दोनों जाँघ, दोनों पिंडलियाँ, हाथ और पैर की अँगुलियाँ- ये आठों अंग बहुत अच्छे हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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