श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 34: सीताजी का हनुमान् जी के प्रति संदेह और उसका समाधान तथा हनुमान् जी के द्वारा श्रीरामचन्द्रजी के गुणों का गान  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  5.34.23 
 
 
किं नु स्याच्चित्तमोहोऽयं भवेद् वातगतिस्त्वियम्।
उन्मादजो विकारो वा स्यादयं मृगतृष्णिका॥ २३॥
 
 
अनुवाद
 
  क्या यह मेरा मन का भ्रम तो नहीं है? क्या यह केवल हवा के चलने के कारण होने वाला भ्रम तो नहीं है? अथवा क्या यह उन्माद के विकार के कारण हो रहा है? या फिर यह कोई मृगतृष्णा तो नहीं है?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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