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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 34: सीताजी का हनुमान् जी के प्रति संदेह और उसका समाधान तथा हनुमान् जी के द्वारा श्रीरामचन्द्रजी के गुणों का गान
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श्लोक 21
श्लोक
5.34.21
स्वप्नेऽपि यद्यहं वीरं राघवं सहलक्ष्मणम्।
पश्येयं नावसीदेयं स्वप्नोऽपि मम मत्सरी॥ २१॥
अनुवाद
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यदि मैं स्वप्न में भी श्रीरघुनाथजी को लक्ष्मण के साथ देख पाऊँ, तो भी मुझे इतना कष्ट नहीं होता; परंतु स्वप्न भी मुझसे ईर्ष्या करता है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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