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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 5: सुन्दर काण्ड
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सर्ग 34: सीताजी का हनुमान् जी के प्रति संदेह और उसका समाधान तथा हनुमान् जी के द्वारा श्रीरामचन्द्रजी के गुणों का गान
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श्लोक 17
श्लोक
5.34.17
अथवा नैतदेवं हि यन्मया परिशङ्कितम्।
मनसो हि मम प्रीतिरुत्पन्ना तव दर्शनात्॥ १७॥
अनुवाद
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अथवा जिस बात की मेरे मन में शंका हो रही है, वह न भी हो; क्योंकि तुम्हें देखने से मेरे मन में प्रसन्नता हो गई है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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