श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 33: सीताजी का हनुमान जी को अपना परिचय देते हुए अपने वनगमन और अपहरण का वृत्तान्त बताना  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  5.33.26 
 
 
स विहायोत्तरीयाणि महार्हाणि महायशा:।
विसृज्य मनसा राज्यं जनन्यै मां समादिशत्॥ २६॥
 
 
अनुवाद
 
  उन अत्यंत प्रसिद्ध श्रीरघुनाथजी ने अपने महँगे उत्तरीय वस्त्र उतार दिए और मन से राज्य के मोह को त्याग कर मुझे अपनी माता के हाथ सौंप दिया।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.