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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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श्लोक 38
श्लोक
5.30.38
अर्थानर्थान्तरे बुद्धिर्निश्चितापि न शोभते।
घातयन्ति हि कार्याणि दूता: पण्डितमानिन:॥ ३८॥
अनुवाद
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अर्थान्तर से प्राप्त निश्चय बुद्धि भी शोभा पाने में असमर्थ रहती है क्योंकि अपने को बड़ा पंडितमानने वाले दूत अपनी मूर्खता से कार्यों का नाश कर देते हैं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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