श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 30: सीताजी से वार्तालाप करने के विषय में हनुमान जी का विचार करना  »  श्लोक 38
 
 
श्लोक  5.30.38 
 
 
अर्थानर्थान्तरे बुद्धिर्निश्चितापि न शोभते।
घातयन्ति हि कार्याणि दूता: पण्डितमानिन:॥ ३८॥
 
 
अनुवाद
 
  अर्थान्तर से प्राप्त निश्चय बुद्धि भी शोभा पाने में असमर्थ रहती है क्योंकि अपने को बड़ा पंडितमानने वाले दूत अपनी मूर्खता से कार्यों का नाश कर देते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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