श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 30: सीताजी से वार्तालाप करने के विषय में हनुमान जी का विचार करना  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  5.30.16 
 
 
अन्तरं त्वहमासाद्य राक्षसीनामवस्थित:।
शनैराश्वासयाम्यद्य संतापबहुलामिमाम्॥ १६॥
 
 
अनुवाद
 
  मैं इन राक्षसियों के पास बैठकर उन्हें धीरे-धीरे दिलासा दूँगा क्योंकि उनके मन में बहुत अधिक दुख है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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