श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 3: लंकापुरी का अवलोकन करके हनुमान् जी का विस्मित होना, निशाचरी लंका का उन्हें रोकना और उनकी मार से विह्वल होकर प्रवेश की अनुमति देना  »  श्लोक 5-6h
 
 
श्लोक  5.3.5-6h 
 
 
भुजगाचरितां गुप्तां शुभां भोगवतीमिव।
तां सविद्युद‍्घनाकीर्णां ज्योतिर्गणनिषेविताम्॥ ५॥
चण्डमारुतनिर्ह्रादां यथा चाप्यमरावतीम्।
 
 
अनुवाद
 
  नागों के आने-जाने से उस नगरी की रक्षा होती थी, इसलिए वह सुंदर भोगवती पुरी के समान सुरक्षित थी। आवश्यकता के अनुसार मेघ छाये रहते थे और बिजली कड़कती रहती थी, जिससे वह अमरावती पुरी के समान प्रतीत होती थी। ग्रहों और नक्षत्रों के सदृश विद्युत-दीपों से वह नगरी प्रकाशित थी और प्रचंड वायु की ध्वनि सदा सुनाई देती थी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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