श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 3: लंकापुरी का अवलोकन करके हनुमान् जी का विस्मित होना, निशाचरी लंका का उन्हें रोकना और उनकी मार से विह्वल होकर प्रवेश की अनुमति देना  »  श्लोक 25-26
 
 
श्लोक  5.3.25-26 
 
 
अथ तामब्रवीद् वीरो हनुमानग्रत: स्थिताम्।
कथयिष्यामि तत् तत्त्वं यन्मां त्वं परिपृच्छसे॥ २५॥
का त्वं विरूपनयना पुरद्वारेऽवतिष्ठसे।
किमर्थं चापि मां क्रोधान्निर्भर्त्सयसि दारुणे॥ २६॥
 
 
अनुवाद
 
  तब वीरवर हनुमान ने अपने सामने खड़ी हुई लंका से कहा - "हे क्रूर स्वभाव वाली नारी! तुम मुझसे जो कुछ पूछ रही हो, मैं उसे ठीक से बताऊंगा; परन्तु पहले यह बताओ कि तुम कौन हो? तुम्हारी आँखें बहुत भयानक हैं। तुम इस नगर के द्वार पर खड़ी हो। क्या कारण है कि तुम इस प्रकार क्रोध करके मुझे डाँट रही हो?"
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.