श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 28: विलाप करती हुई सीता का प्राण त्याग के लिये उद्यत होना  »  श्लोक 18-19
 
 
श्लोक  5.28.18-19 
 
 
उपस्थिता सा मृदुसर्वगात्री
शाखां गृहीत्वा च नगस्य तस्य।
तस्यास्तु रामं परिचिन्तयन्त्या
रामानुजं स्वं च कुलं शुभांगॺा:॥ १८॥
तस्या विशोकानि तदा बहूनि
धैर्यार्जितानि प्रवराणि लोके।
प्रादुर्निमित्तानि तदा बभूवु:
पुरापि सिद्धान्युपलक्षितानि॥ १९॥
 
 
अनुवाद
 
  सीताजी के सभी अंग बहुत कोमल थे। वे अशोक वृक्ष के पास खड़ी हो गईं और उसकी शाखा पकड़ ली। इस तरह जब वो अपनी जान देने को तैयार थीं, तभी उन्हें श्रीराम, लक्ष्मण और अपने कुल के बारे में सोचकर ढाढ़स बंधा। उस समय शुभांगी सीता के सामने ऐसे कई लोकप्रसिद्ध श्रेष्ठ शकुन प्रकट हुए जो शोक दूर करने वाले और उन्हें सहारा देने वाले थे। उन्होंने पहले भी ऐसे शकुन देखे थे और उनके अच्छे नतीजों का अनुभव भी किया था।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये सुन्दरकाण्डेऽष्टाविंश: सर्ग:॥ २८॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके सुन्दरकाण्डमें अट्ठाईसवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ २८॥
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.