श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 27: त्रिजटा का स्वप्न, राक्षसों के विनाश और श्रीरघुनाथजी की विजय की शुभ सूचना  »  श्लोक 48
 
 
श्लोक  5.27.48 
 
 
छायावैगुण्यमात्रं तु शङ्के दु:खमुपस्थितम्।
अदु:खार्हामिमां देवीं वैहायसमुपस्थिताम्॥ ४८॥
 
 
अनुवाद
 
  मैं समझती हूँ कि अभी इन्हें जो दुख हुआ है, वह ऐसा है जैसे ग्रहण के समय चंद्रमा पर छाया पड़ जाती है। यह कुछ क्षणों का ही होता है। क्योंकि रात्रि में मुझे देवी सीता स्वप्न में विमान पर बैठी हुई नजर आईं। इसलिए ये दुख भोगने के बिल्कुल भी योग्य नहीं हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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