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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 27: त्रिजटा का स्वप्न, राक्षसों के विनाश और श्रीरघुनाथजी की विजय की शुभ सूचना
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श्लोक 27-28
श्लोक
5.27.27-28
सहसोत्थाय सम्भ्रान्तो भयार्तो मदविह्वल:।
उन्मत्तरूपो दिग्वासा दुर्वाक्यं प्रलपन् बहु॥ २७॥
दुर्गन्धं दु:सहं घोरं तिमिरं नरकोपमम्।
मलपङ्कं प्रविश्याशु मग्नस्तत्र स रावण:॥ २८॥
अनुवाद
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सहसा उठकर रावण घबरा गया और मद से विह्वल पागल की तरह नाचने लगा। वह बिना वस्त्र पहने गालियाँ बकते हुए आगे बढ़ा। सामने ही दुर्गन्धयुक्त घोर अँधेेरा और नरक के समान मल का पंक था। रावण उसी में चला गया और वहीं डूब गया।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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