श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 20: रावण का सीताजी को प्रलोभन  »  श्लोक 36
 
 
श्लोक  5.20.36 
 
 
कुसुमिततरुजालसंततानि
भ्रमरयुतानि समुद्रतीरजानि।
कनकविमलहारभूषितांगी
विहर मया सह भीरु काननानि॥ ३६॥
 
 
अनुवाद
 
  भीरु! मेरे साथ समुद्र-तटवर्ती उन काननों में विहार करो, जहाँ खिले हुए वृक्षों के समूह फैले हुए हैं और उन पर भ्रमर मँडरा रहे हैं। अपना शरीर सोने के निर्मल हारों से विभूषित करो और मेरे साथ आनंद लो।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये सुन्दरकाण्डे विंश: सर्ग:॥ २०॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके सुन्दरकाण्डमें बीसवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ २०॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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