उसी समय हनुमान जी ने देखा कि सीता जी की आँखें मृग-शावक की तरह चंचल थीं। वे डरी हुई मृग-नारी की भाँति हर तरफ संशय से भरी दृष्टि से देख रही थीं। उनके उच्छ्वास मानो पत्तियों से लदे वृक्षों को जला रहे थे। वे शोक की मूर्ति लग रही थीं और दुःख की उठी हुई लहर प्रतीत हो रही थीं। उनके अंग-अंग का विभाजन सुंदर था। यद्यपि वे विरह-शोक से दुर्बल हो गई थीं, फिर भी बिना किसी आभूषण के ही सुशोभित थीं। इस अवस्था में मैथिली कुमारी सीता को देखकर पवनपुत्र हनुमान जी को उनके पता लगने के कारण अनुपम प्रसन्नता प्राप्त हुई।