श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 17: भयंकर राक्षसियों से घिरी हुई सीता के दर्शन से हनुमान जी का प्रसन्न होना  »  श्लोक 28-30
 
 
श्लोक  5.17.28-30 
 
 
तां दृष्ट्वा हनुमान् सीतां मृगशावनिभेक्षणाम्।
मृगकन्यामिव त्रस्तां वीक्षमाणां समन्तत:॥ २८॥
दहन्तीमिव नि:श्वासैर्वृक्षान् पल्लवधारिण:।
संघातमिव शोकानां दु:खस्योर्मिमिवोत्थिताम्॥ २९॥
तां क्षमां सुविभक्तांगीं विनाभरणशोभिनीम्।
प्रहर्षमतुलं लेभे मारुति: प्रेक्ष्य मैथिलीम्॥ ३०॥
 
 
अनुवाद
 
  उसी समय हनुमान जी ने देखा कि सीता जी की आँखें मृग-शावक की तरह चंचल थीं। वे डरी हुई मृग-नारी की भाँति हर तरफ संशय से भरी दृष्टि से देख रही थीं। उनके उच्छ्वास मानो पत्तियों से लदे वृक्षों को जला रहे थे। वे शोक की मूर्ति लग रही थीं और दुःख की उठी हुई लहर प्रतीत हो रही थीं। उनके अंग-अंग का विभाजन सुंदर था। यद्यपि वे विरह-शोक से दुर्बल हो गई थीं, फिर भी बिना किसी आभूषण के ही सुशोभित थीं। इस अवस्था में मैथिली कुमारी सीता को देखकर पवनपुत्र हनुमान जी को उनके पता लगने के कारण अनुपम प्रसन्नता प्राप्त हुई।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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