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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 5: सुन्दर काण्ड
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सर्ग 13: सीताजी के नाश की आशंका से हनुमान्जी की चिन्ता, श्रीराम को सीता के न मिलने की सचना देने से अनर्थ की सम्भावना देख हनुमान का पुनः खोजने का विचार करना
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श्लोक 40
श्लोक
5.13.40
हस्तादानो मुखादानो नियतो वृक्षमूलिक:।
वानप्रस्थो भविष्यामि ह्यदृष्ट्वा जनकात्मजाम्॥ ४०॥
अनुवाद
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यदि मुझे जानकी जी के दर्शन नहीं मिलते, तो मैं यहाँ वानप्रस्थी हो जाऊँगा। मैं केवल उन्हीं फलों और अन्य खाद्य पदार्थों को खाऊँगा जो मुझे स्वयं प्राप्त हो जाएँगे, या जो कोई मुझे देगा। मैं वृक्ष के नीचे रहूँगा और शौच, संतोष आदि नियमों का पालन करूँगा।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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