श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 13: सीताजी के नाश की आशंका से हनुमान्जी की चिन्ता, श्रीराम को सीता के न मिलने की सचना देने से अनर्थ की सम्भावना देख हनुमान का पुनः खोजने का विचार करना  »  श्लोक 32-33
 
 
श्लोक  5.13.32-33 
 
 
भर्तृजेन तु दु:खेन अभिभूता वनौकस:।
शिरांस्यभिहनिष्यन्ति तलैर्मुष्टिभिरेव च॥ ३२॥
सान्त्वेनानुप्रदानेन मानेन च यशस्विना।
लालिता: कपिनाथेन प्राणांस्त्यक्ष्यन्ति वानरा:॥ ३३॥
 
 
अनुवाद
 
  तदनंतर स्वामी के दुख से पीड़ित सारे वानर अपने सिरों को हाथों और मुक्कों से पीटने लगेंगे। जिन वानरों का पालन-पोषण यशस्वी वानरराज ने सान्त्वनापूर्ण वचनों, दान और मान-सम्मान से किया था, वे वानर अपने प्राण त्याग देंगे॥ ३२-३३॥
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.