श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 1: हनुमान् जी के द्वारा समुद्र का लङ्घन, मैनाक के द्वारा उनका स्वागत, सुरसा पर उनकी विजय तथा सिंहिका का वध,लंका की शोभा देखना  »  श्लोक 121
 
 
श्लोक  5.1.121 
 
 
पूजिते त्वयि धर्मज्ञे पूजां प्राप्नोति मारुत:।
तस्मात् त्वं पूजनीयो मे शृणु चाप्यत्र कारणम्॥ १२१॥
 
 
अनुवाद
 
  तुम धर्म के ज्ञाता हो। तुम्हारी पूजा होने पर वायुदेव की साक्षात् पूजा हो जाती है, इसलिये तुम अवश्य ही मेरे पूजनीय हो। इसमें और भी एक कारण है, उसे सुनो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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