श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 9: सुग्रीव का श्रीरामचन्द्रजी को वाली के साथ अपने वैर होने का कारण बताना  »  श्लोक 24-25
 
 
श्लोक  4.9.24-25 
 
 
हत्वा शत्रुं स मे भ्राता प्रविवेश पुरं तदा॥ २४॥
मानयंस्तं महात्मानं यथावच्चाभिवादयम्।
उक्ताश्च नाशिषस्तेन प्रहृष्टेनान्तरात्मना॥ २५॥
 
 
अनुवाद
 
  इस प्रकार शत्रु का वध करके मेरे भाई ने उस समय नगर में प्रवेश किया। उन महात्मा का सम्मान करते हुए मैंने यथावत् उनके चरणों में मस्तक झुकाया तो भी उन्होंने प्रसन्न होकर मुझे आशीर्वाद नहीं दिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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