श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 9: सुग्रीव का श्रीरामचन्द्रजी को वाली के साथ अपने वैर होने का कारण बताना  »  श्लोक 19-20
 
 
श्लोक  4.9.19-20 
 
 
अहं त्ववगतो बुद्धॺा चिह्नैस्तैर्भ्रातरं हतम्।
पिधाय च बिलद्वारं शिलया गिरिमात्रया॥ १९॥
शोकार्तश्चोदकं कृत्वा किष्किन्धामागत: सखे।
गूहमानस्य मे तत् त्वं यत्नतो मन्त्रिभि: श्रुतम्॥ २०॥
 
 
अनुवाद
 
  मैंने इन सभी संकेतों को देखकर विवेक से विचार किया और इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि मेरे बड़े भाई मारे गए हैं। इसके बाद मैंने गुफा के दरवाजे पर एक पहाड़ के समान चट्टान को रख दिया, उसे बंद कर दिया और भाई को जल समाधि देकर शोक से व्याकुल होकर किष्किन्धा पुरी लौट आया। मित्रवर! हालाँकि मैं इस सच को छिपा रहा था, फिर भी मेरे मंत्रियों ने सभी साधनों से ये बात पता कर ली थी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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