श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 8: सुग्रीव का श्रीराम से अपना दुःख निवेदन करना और श्रीराम का उन्हें आश्वासन देते हुए दोनों भाइयों में वैर होने का कारण पूछना  »  श्लोक 45
 
 
श्लोक  4.8.45 
 
 
एवमुक्तस्तु सुग्रीव: काकुत्स्थेन महात्मना।
प्रहर्षमतुलं लेभे चतुर्भि: सह वानरै:॥ ४५॥
 
 
अनुवाद
 
  महात्मा श्रीराम के ऐसे वचन सुनकर सुग्रीव अपने चार वानर साथियों के साथ अपार हर्षित हुआ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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