एष मे राम शोकान्त: शोकार्तेन निवेदित:।
दु:खित: सुखितो वापि सख्युर्नित्यं सखा गति:॥ ४०॥
अनुवाद
श्रीराम! यही मेरे दुःख को दूर करने का उपाय है। मैंने दुख से पीड़ित होने के कारण आपसे यह बात निवेदन की है; क्योंकि मित्र दुःख में हो या सुख में, वह हमेशा अपने मित्र की सहायता करता है।