श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 8: सुग्रीव का श्रीराम से अपना दुःख निवेदन करना और श्रीराम का उन्हें आश्वासन देते हुए दोनों भाइयों में वैर होने का कारण पूछना  »  श्लोक 35
 
 
श्लोक  4.8.35 
 
 
शङ्कया त्वेतयाहं च दृष्ट्वा त्वामपि राघव।
नोपसर्पाम्यहं भीतो भये सर्वे हि बिभ्यति॥ ३५॥
 
 
अनुवाद
 
  रघुनाथजी! सबसे पहले तो मुझे भी आपको देखकर ऐसा ही संदेह हुआ था। इसलिए मैं डर के कारण आपके पास नहीं आ सका। क्योंकि जब डर का मौका आता है, तो अक्सर हर कोई डर जाता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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