शङ्कया त्वेतयाहं च दृष्ट्वा त्वामपि राघव।
नोपसर्पाम्यहं भीतो भये सर्वे हि बिभ्यति॥ ३५॥
अनुवाद
रघुनाथजी! सबसे पहले तो मुझे भी आपको देखकर ऐसा ही संदेह हुआ था। इसलिए मैं डर के कारण आपके पास नहीं आ सका। क्योंकि जब डर का मौका आता है, तो अक्सर हर कोई डर जाता है।