श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 8: सुग्रीव का श्रीराम से अपना दुःख निवेदन करना और श्रीराम का उन्हें आश्वासन देते हुए दोनों भाइयों में वैर होने का कारण पूछना  »  श्लोक 34
 
 
श्लोक  4.8.34 
 
 
यत्नवांश्च स दुष्टात्मा मद्विनाशाय राघव।
बहुशस्तप्रयुक्ताश्च वानरा निहता मया॥ ३४॥
 
 
अनुवाद
 
  राघवनंदन! इसके बाद भी वह दुरात्मा वाली मेरे विनाश के लिए यत्न करता रहता है। उसके द्वारा भेजे गए अनेक वानरों का वध मैंने किया है।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.