श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 8: सुग्रीव का श्रीराम से अपना दुःख निवेदन करना और श्रीराम का उन्हें आश्वासन देते हुए दोनों भाइयों में वैर होने का कारण पूछना  »  श्लोक 28
 
 
श्लोक  4.8.28 
 
 
वयस्य इति कृत्वा च विस्रब्ध: प्रवदाम्यहम्।
दु:खमन्तर्गतं तन्मे मनो हरति नित्यश:॥ २८॥
 
 
अनुवाद
 
  मैं तुम्हें मित्र मानकर ही तुम्हारे साथ यह अंतरंग बातें शेयर कर सकता हूँ। मेरे मन में एक दुःख है जो हमेशा मुझे परेशान करता रहता है। मैं इसे तुमसे इसलिए बता रहा हूँ क्योंकि मुझे तुम पर पूरा विश्वास है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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