वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड
»
सर्ग 67: हनुमान जी का समुद्र लाँघने के लिये उत्साह प्रकट करना, जाम्बवान् के द्वारा उनकी प्रशंसा तथा वेगपूर्वक छलाँग मारने के लिये हनुमान जी का महेन्द्र पर्वत पर चढ़ना
»
श्लोक 7
श्लोक
4.67.7
अशोभत मुखं तस्य जृम्भमाणस्य धीमत:।
अम्बरीषोपमं दीप्तं विधूम इव पावक:॥ ७॥
अनुवाद
play_arrowpause
जब बुद्धिमान हनुमान जी जम्हाई लेते थे, तब उनका दमकता चेहरा जलती आग या बिना धुएँ की आग की तरह दिखाई देता था।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.