वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड
»
सर्ग 67: हनुमान जी का समुद्र लाँघने के लिये उत्साह प्रकट करना, जाम्बवान् के द्वारा उनकी प्रशंसा तथा वेगपूर्वक छलाँग मारने के लिये हनुमान जी का महेन्द्र पर्वत पर चढ़ना
»
श्लोक 48
श्लोक
4.67.48
ऋषिभिस्त्राससम्भ्रान्तैस्त्यज्यमान: शिलोच्चय:।
सीदन् महति कान्तारे सार्थहीन इवाध्वग:॥ ४८॥
अनुवाद
play_arrowpause
ऋषि-मुनि भय से घबराहट में उस पर्वत को त्यागकर भागने लगे। जिस प्रकार विशाल दुर्गम वन में चलने वाला राही अपने साथियों से बिछुड़ जाने पर विपत्ति में फँस जाता है, उसी प्रकार उस महान पर्वत महेन्द्र की दशा हो रही थी।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.