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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड
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सर्ग 67: हनुमान जी का समुद्र लाँघने के लिये उत्साह प्रकट करना, जाम्बवान् के द्वारा उनकी प्रशंसा तथा वेगपूर्वक छलाँग मारने के लिये हनुमान जी का महेन्द्र पर्वत पर चढ़ना
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श्लोक 47
श्लोक
4.67.47
नि:श्वसद्भिस्तदा तैस्तु भुजगैरर्धनि:सृतै:।
सपताक इवाभाति स तदा धरणीधर:॥ ४७॥
अनुवाद
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देखो, जब साँप जैसे उन पर्वतों ने अपने आधे शरीर को बिलों से बाहर निकालकर गहरी साँस ली, तो ये विशाल पर्वत पताकाओं से सजे ध्वजपताकों की तरह दिखाई देने लगे।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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