श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 67: हनुमान जी का समुद्र लाँघने के लिये उत्साह प्रकट करना, जाम्बवान् के द्वारा उनकी प्रशंसा तथा वेगपूर्वक छलाँग मारने के लिये हनुमान जी का महेन्द्र पर्वत पर चढ़ना  »  श्लोक 44
 
 
श्लोक  4.67.44 
 
 
मुमोच सलिलोत्पीडान् विप्रकीर्णशिलोच्चय:।
वित्रस्तमृगमातङ्ग: प्रकम्पितमहाद्रुम:॥ ४४॥
 
 
अनुवाद
 
  उसके शिलाखंड इधर-उधर बिखर गए। इससे नए-नए झरने निकल पड़े। वहां रहने वाले हिरण और हाथी डर से कांपने लगे और बड़े-बड़े पेड़ हवा के झोंके से झुकने लगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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