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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड
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सर्ग 67: हनुमान जी का समुद्र लाँघने के लिये उत्साह प्रकट करना, जाम्बवान् के द्वारा उनकी प्रशंसा तथा वेगपूर्वक छलाँग मारने के लिये हनुमान जी का महेन्द्र पर्वत पर चढ़ना
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श्लोक 43
श्लोक
4.67.43
पादाभ्यां पीडितस्तेन महाशैलो महात्मना।
ररास सिंहाभिहतो महान् मत्त इव द्विप:॥ ४३॥
अनुवाद
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महाकाय हनुमान जी के दोनों पाँव से दबे हुए उस महान पर्वत से वहाँ रहने वाले प्राणियों की चीत्कार उस आहत हाथी के जैसी हो गई थी जिस पर सिंह ने हमला किया हो।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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