श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 67: हनुमान जी का समुद्र लाँघने के लिये उत्साह प्रकट करना, जाम्बवान् के द्वारा उनकी प्रशंसा तथा वेगपूर्वक छलाँग मारने के लिये हनुमान जी का महेन्द्र पर्वत पर चढ़ना  »  श्लोक 36-38h
 
 
श्लोक  4.67.36-38h 
 
 
एतानीह नगस्यास्य शिलासंकटशालिन:॥ ३६॥
शिखराणि महेन्द्रस्य स्थिराणि च महान्ति च।
येषु वेगं गमिष्यामि महेन्द्रशिखरेष्वहम्॥ ३७॥
नानाद्रुमविकीर्णेषु धातुनिष्पन्दशोभिषु।
 
 
अनुवाद
 
  महेन्द्र पर्वत के ये शिखर, जो चट्टानों के समूह से सुशोभित हैं, ऊँचे और स्थिर हैं। इन शिखरों पर विभिन्न प्रकार के पेड़ फैले हुए हैं और गैरिक जैसी धातुएँ चमक रही हैं। मैं इन महेन्द्र शिखरों पर अपने पैरों से वेगपूर्वक कदम रखकर यहाँ से छलाँग लगाऊँगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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