श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 67: हनुमान जी का समुद्र लाँघने के लिये उत्साह प्रकट करना, जाम्बवान् के द्वारा उनकी प्रशंसा तथा वेगपूर्वक छलाँग मारने के लिये हनुमान जी का महेन्द्र पर्वत पर चढ़ना  »  श्लोक 35-36h
 
 
श्लोक  4.67.35-36h 
 
 
ततश्च हरिशार्दूलस्तानुवाच वनौकस:॥ ३५॥
कोऽपि लोके न मे वेगं प्लवने धारयिष्यति।
 
 
अनुवाद
 
  तत्पश्चात् हनुमान जी ने उन वनवासी वानरों से कहा, "जब मैं यहाँ से छलाँग मारूँगा, तब संसार में कोई भी मेरे वेग को नहीं रोक पाएगा।"
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.