बुद्ध्या चाहं प्रपश्यामि मनश्चेष्टा च मे तथा।
अहं द्रक्ष्यामि वैदेहीं प्रमोदध्वं प्लवङ्गमा:॥ २६॥
अनुवाद
बुद्धि से मैं जैसा देखता या सोचता हूँ, मेरे मन की चेष्टा भी उसके अनुरूप ही होती है। मैं निश्चय पूर्वक जानता हूँ कि मैं विदेह की राजकुमारी सीता जी के दर्शन करूँगा, इसलिए अब तुम लोग खुशियाँ मनाओ।