श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 67: हनुमान जी का समुद्र लाँघने के लिये उत्साह प्रकट करना, जाम्बवान् के द्वारा उनकी प्रशंसा तथा वेगपूर्वक छलाँग मारने के लिये हनुमान जी का महेन्द्र पर्वत पर चढ़ना  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  4.67.26 
 
 
बुद्‍ध्या चाहं प्रपश्यामि मनश्चेष्टा च मे तथा।
अहं द्रक्ष्यामि वैदेहीं प्रमोदध्वं प्लवङ्गमा:॥ २६॥
 
 
अनुवाद
 
  बुद्धि से मैं जैसा देखता या सोचता हूँ, मेरे मन की चेष्टा भी उसके अनुरूप ही होती है। मैं निश्चय पूर्वक जानता हूँ कि मैं विदेह की राजकुमारी सीता जी के दर्शन करूँगा, इसलिए अब तुम लोग खुशियाँ मनाओ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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