श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 67: हनुमान जी का समुद्र लाँघने के लिये उत्साह प्रकट करना, जाम्बवान् के द्वारा उनकी प्रशंसा तथा वेगपूर्वक छलाँग मारने के लिये हनुमान जी का महेन्द्र पर्वत पर चढ़ना  »  श्लोक 24
 
 
श्लोक  4.67.24 
 
 
निमेषान्तरमात्रेण निरालम्बनमम्बरम्।
सहसा निपतिष्यामि घनाद् विद्युदिवोत्थिता॥ २४॥
 
 
अनुवाद
 
  मेरी गति वैसी होगी जैसे मेघों के बीच से निकलने वाली बिजली की एक चमकी हो। पल भर में ही मैं आकाश में उड़ जाऊँगा और फिर आकाश से गिरूँगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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