श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 67: हनुमान जी का समुद्र लाँघने के लिये उत्साह प्रकट करना, जाम्बवान् के द्वारा उनकी प्रशंसा तथा वेगपूर्वक छलाँग मारने के लिये हनुमान जी का महेन्द्र पर्वत पर चढ़ना  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  4.67.23 
 
 
वैनतेयस्य वा शक्तिर्मम वा मारुतस्य वा।
ऋते सुपर्णराजानं मारुतं वा महाबलम्।
न तद् भूतं प्रपश्यामि यन्मां प्लुतमनुव्रजेत्॥ २३॥
 
 
अनुवाद
 
  विनता नन्दन गरुड़ या तो मैं या वायु देव, इन तीनों में से ही समुद्र पार करने की शक्ति है। पक्षिराज गरुड़ या महाबली वायु देव के अलावा कोई भी प्राणी ऐसा नहीं है जो यहाँ से छलाँग लगाकर मेरे साथ आ सके।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.