श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 67: हनुमान जी का समुद्र लाँघने के लिये उत्साह प्रकट करना, जाम्बवान् के द्वारा उनकी प्रशंसा तथा वेगपूर्वक छलाँग मारने के लिये हनुमान जी का महेन्द्र पर्वत पर चढ़ना  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  4.67.12 
 
 
बाहुवेगप्रणुन्नेन सागरेणाहमुत्सहे।
समाप्लावयितुं लोकं सपर्वतनदीह्रदम्॥ १२॥
 
 
अनुवाद
 
  भुजाओं के प्रचंड वेग से समुद्र को उमड़ाकर तथा उस समुद्र से निखले जल से पर्वत, नदियों तथा झीलों सहित संपूर्ण जगत् में जलप्लावन ला सकता हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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