श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 66: जाम्बवान् का हनुमानजी को उनकी उत्पत्ति कथा सुनाकर समुद्रलङ्घन के लिये उत्साहित करना  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  4.66.6 
 
 
पक्षयोर्यद् बलं तस्य भुजवीर्यबलं तव।
विक्रमश्चापि वेगश्च न ते तेनापहीयते॥ ६॥
 
 
अनुवाद
 
  पक्षियों में जितनी क्षमता होती है उड़ान भरने की, उतनी ही ताकत और साहस तुम्हारी इन दोनों भुजाओं में भी है। इसलिए तेरी गति और शौर्य भी उन पक्षियों से कम नहीं है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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