श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 66: जाम्बवान् का हनुमानजी को उनकी उत्पत्ति कथा सुनाकर समुद्रलङ्घन के लिये उत्साहित करना  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  4.66.5 
 
 
बहुशो हि मया दृष्ट: सागरे स महाबल:।
भुजङ्गानुद्धरन् पक्षी महाबाहुर्महाबल:॥ ५॥
 
 
अनुवाद
 
  समुद्र में कई बार मैंने महाबली और महाबाहु पक्षिराज गरुड़ को देखा है, जो नागों को समुद्र से बाहर निकालकर लाते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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