श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 66: जाम्बवान् का हनुमानजी को उनकी उत्पत्ति कथा सुनाकर समुद्रलङ्घन के लिये उत्साहित करना  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  4.66.12 
 
 
तस्या वस्त्रं विशालाक्ष्या: पीतं रक्तदशं शुभम्।
स्थिताया: पर्वतस्याग्रे मारुतोऽपाहरच्छनै:॥ १२॥
 
 
अनुवाद
 
  उस विशालाक्षी बालाका सुन्दर वस्त्र पीले रंग का था, किन्तु उसके किनारे का रंग लाल था। वह पर्वत के शिखर पर खड़ी थी। उसी समय वायुदेवता ने उसके उस वस्त्र को धीरे-धीरे हर लिया।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.