श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 66: जाम्बवान् का हनुमानजी को उनकी उत्पत्ति कथा सुनाकर समुद्रलङ्घन के लिये उत्साहित करना  »  श्लोक 10-11
 
 
श्लोक  4.66.10-11 
 
 
मानुषं विग्रहं कृत्वा रूपयौवनशालिनी॥ १०॥
विचित्रमाल्याभरणा कदाचित् क्षौमधारिणी।
अचरत् पर्वतस्याग्रे प्रावृडम्बुदसंनिभे॥ ११॥
 
 
अनुवाद
 
  एक दिन की बात है, सुंदरता और यौवन से सुशोभित अंजना ने मानवी स्त्री का शरीर धारण किया और वर्षा ऋतु के मेघ की तरह श्याम रंगत वाले एक पर्वत-शिखर पर विचरण कर रही थी। उसके बदन पर रेशमी साड़ी की शोभा थी और वह फूलों के विचित्र आभूषणों से सुशोभित थी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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