श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 65: जाम्बवान् और अङ्गद की बातचीत तथा जाम्बवान् का हनुमान्जी को प्रेरित करने के लिये उनके पास जाना  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  4.65.3 
 
 
आबभाषे गजस्तत्र प्लवेयं दशयोजनम्।
गवाक्षो योजनान्याह गमिष्यामीति विंशतिम्॥ ३॥
 
 
अनुवाद
 
  गज ने कहा — ‘मैं दस योजन की छलाँग लगाकर पानी पार कर सकता हूँ।’ गवाक्ष बोला — ‘मैं बीस योजन तक तैर कर चला जाऊँगा।’
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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