श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 65: जाम्बवान् और अङ्गद की बातचीत तथा जाम्बवान् का हनुमान्जी को प्रेरित करने के लिये उनके पास जाना  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  4.65.27 
 
 
गुरुश्च गुरुपुत्रश्च त्वं हि न: कपिसत्तम।
भवन्तमाश्रित्य वयं समर्था ह्यर्थसाधने॥ २७॥
 
 
अनुवाद
 
  हे कपिश्रेष्ठ! आप हमारे गुरु और गुरु-पुत्र दोनों हैं। आपके आश्रय में रहकर ही हम सभी कार्य साधन में समर्थ हो सकते हैं।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.