श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 65: जाम्बवान् और अङ्गद की बातचीत तथा जाम्बवान् का हनुमान्जी को प्रेरित करने के लिये उनके पास जाना  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  4.65.26 
 
 
तद् भवानस्य कार्यस्य साधनं सत्यविक्रम।
वुद्धिविक्रमसम्पन्नो हेतुरत्र परंतप॥ २६॥
 
 
अनुवाद
 
  अतः हे पराक्रमी शत्रुदमन वीर! तुम इस कार्य को पूरा करने के लिए सक्षम हो, क्योंकि तुम सत्यवादी और वीर हो। तुम बुद्धिमान और पराक्रमी भी हो, इसलिए तुम इस कार्य को करने में सफल हो सकते हो।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.